नई दिल्ली चीन के लिहाज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भूटान दौरा खास मायने रखता है। चीन की कोशिश हमेशा से रही है कि भूटान में उसका प्रभाव बढ़े और कूटनीतिक संबंध बेहतर हों, लेकिन भूटान का साफ रुख यह है कि वो भारत के साथ है। भारत के साथ भूटान के कूटनीतिक रिश्ते हैं, जबकि चीन के साथ उसके इस तरह के रिश्ते भी नहीं हैं। डोकलाम विवाद के समय भी भूटान ने भारत का साथ दिया था।
चीन को खटती है मैत्री संधि
भारत और भूटान की दोस्ती को और करीब लाने में 1949 में हुई इस संधि का बड़ा योगदान रहा है। इस संधि के तहत भूटान को अपने विदेशी संबंधों के मामले में भारत को भी शामिल करना होता है। लेकिन, 2007 में इस समझौते में संशोधन हुआ और इसमें जोड़ा गया कि जिन विदेशी मामलों में भारत सीधे तौर पर जुड़ा होगा, उन्हीं में भूटान उसे सूचित करेगा। यही नहीं, इस संधि से दोनों देश, अपने राष्ट्रीय हितों से संबंधित मुद्दों पर एक दूसरे के साथ घनिष्ठ सहयोग करने तथा एक दूसरे की राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों के विरुद्ध अपने क्षेत्रों का उपयोग न करने देने के लिए प्रतिबद्ध होंगे। इसलिए भारत और भूटान के बीच की यह संधि चीन को हमेशा खटकती रही है।
मजबूत व्यापार संबंध से परेशानी
भारत और चीन के बीच हिमालय की गोद में बसे आठ लाख आबादी वाले देश भूटान की वित्तीय और रक्षा नीति पर भी भारत का प्रभाव है। यही नहीं, भूटान अपना 98 फीसद निर्यात भारत को करता है और करीब 90 फीसद सामान भी भारत से ही आयात करता है। भारतीय सेना भूटान की शाही सेना को प्रशिक्षण देती रही है। ये बातें भी चीन को कहीं न कहीं परेशान करती रही हैं।
डोकलाम विवाद
ये इलाका वहां है जहां चीन और भारत के उत्तर-पूर्व में मौजूद सिक्किम और भूटान की सीमाएं मिलती हैं। भूटान और चीन दोनों इस इलाके पर अपना दावा करते हैं और भारत भूटान के दावे का समर्थन करता है। यह वही इलाका है जो भारत को सेवन सिस्टर्स नाम से मशहूर उत्तर पूर्वी राज्यों से जोड़ता है और सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत भूटान के साथ 699 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है।
सासेक परियोजना ने बढ़ार्ई चिंता
2001 में भारत ने भूटान, नेपाल, बांग्लादेश व म्यांमार को जोड़ने के लिए सासेक (साउथ एशियन सब रीजनल इकोनॉमिक को-ऑपरेशन) कॉरिडोर शुरू किया था। इंफाल से मोरेह (म्यांमार) को जोड़ने वाले इस मार्ग को पूर्वी एशियाई बाजार के लिए भारत का प्रवेश द्वार माना जा रहा है। भारत की योजना इस मार्ग के जरिये पूर्वी एशियाई बाजारों को पूर्वोत्तर राज्यों को जोड़ने की है। इंफाल-मोरेह मार्ग के निर्माण के साथ ही बैंकाक तक पहुंचने के लिए भारत को एक वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हो जाएगा। 2014 में मालदीव और श्रीलंका भी इसके सदस्य बन गए। चीन की महत्वकांक्षी ओबीओआर परियोजना के जवाब में भारत यह परियोजना लेकर आया है।
मजबूत हुए दिल के रिश्ते
भूटान के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग ने मोदी के दौरे को सफल बताया। मोदी के भारत रवाना होने के बाद शेरिंग ने कहा, ‘हम जो चाहते थे और जो दे सकते थे, विशेषतौर पर दिल के रिश्तों के मामले में, उस लिहाज से प्रधानमंत्री मोदी का दौरा सफल रहा। यद्यपि हमारी तरफ से यह आधिकारिक दौरा था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से यह बहुत आध्यात्मिक और दोस्ती भरा दौरा रहा।’ शेरिंग ने दौरे को सफल बनाने के लिए सभी स्थानीय अधिकारियों का भी आभार जताया।
‘प्रसन्नता’ है भूटान का संदेश
मोदी ने कहा कि भूटान ने प्रसन्नता के सार को समझ लिया है। इस हिमालयी देश ने ‘ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस’ की अपनी अवधारणा के चलते दुनिया में पहचान बनाई है। यहां विकास का पैमाना आंकड़े नहीं, बल्कि प्रसन्नता है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘भूटान ने सद्भाव, एकजुटता और करुणा की भावना को समझा है। यह भावना मुझे उन बच्चों में दिखाई दी जो मेरा स्वागत करने के लिए सड़कों पर कतारबद्ध थे। उनकी मुस्कान मुझे हमेशा याद रहेगी।’