राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों को साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए कानून को लागू किया जा रहा, राष्ट्रपति से मिली अनुमति

आदिवासी समाज को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कोशिशों ने जनजातीय जुटान के नए दौर की शुरुआत कर दी है। आदिवासी समाज के विकास के लिए केंद्र व राज्य की सरकारें वैसे तो कई योजनाएं संचालित कर रही हैं, पर इसका उजियारा उन तक पहुंचे, यह सुनिश्चित करने की जो पहल अब की गई है उसने नया आकर्षण और नई धुरी पैदा की है। लंबे समय तक चुनावी वादों तक सिमटे रहे आदिवासी अब राज्य की राजनीति में मुख्य विषय बन गए हैं। बड़ा जनजातीय सम्मेलन करके भाजपा ने जहां उनके बीच अपनी पकड़ मजबूत की है तो वहीं कांग्रेस में अपना आधार बचाने की छटपटाहट साफ दिख रही है। कांग्रेस के नेता अपने बयानों के जरिये इसे व्यक्त भी कर रहे हैं। उन्हें पता है कि भाजपा प्रदेश के जनजातियों को साधने में पूरी तरह कामयाब हो जाती है तो यह कांग्रेस के लिए सबसे खराब दौर की शुरुआत होगी।

दरअसल मध्य प्रदेश में अर्थव्यवस्था से लेकर राजनीति की दिशा तक तय करने में आदिवासी समाज की भूमिका महत्वपूर्ण है। ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है। इसके लिए श्रम साध्य ज्यादातर कार्य आदिवासी ही करते हैं। प्रदेश में उनकी संख्या एक करोड़ 53 लाख है, जो कुल आबादी का 21 फीसद से अधिक है। 20 जिलों के 89 विकासखंड आदिवासी बहुल हैं। राज्य विधानसभा की 47 सीटें और लोकसभा की छह सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। 47 विधानसभा क्षेत्रों के अलावा करीब 35 सीटें ऐसी हैं, जिनमें आदिवासी मतदाताओं की भूमिका निर्णायक है। ऐसे में भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही आदिवासी समाज को साधने में पूरा जोर लगाते हैं। कांग्रेस इस समाज के कारण ही लंबे समय तक सत्ता का सुख भोगती रही है, लेकिन जैसे ही उनमें भाजपा का दखल बढ़ा, कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता देखना पड़ा।

वर्ष 2003 से 2013 तक के विधानसभा चुनावों में आदिवासियों का झुकाव भाजपा की ओर रहा। कांग्रेस के नेता भी यह अच्छी तरह जानते हैं कि जब तक आदिवासियों के बीच उनका खोया जनाधार वापस नहीं आता, तब तक सत्ता का वनवास खत्म नहीं होने वाला। इसीलिए पार्टी ने 2018 के चुनाव में आदिवासी क्षेत्रों में पूरी ताकत लगाई। वादों की झड़ी लगकर आदिवासियों का विश्वास जीतने की कोशिश की गई। इसका फायदा भी हुआ और 15 साल बाद कांग्रेस ने कमल नाथ के नेतृत्व में सत्ता में वापसी की। कमल नाथ की सरकार ने अपने 15 माह के कार्यकाल के दौरान आदिवासी वर्ग को साधने के लिए साहूकारों के कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिए कानून बनाया। गोठान विकास, विश्व आदिवासी दिवस मनाने जैसे कई लुभावने एवं भावनात्मक कदम भी उठाए, लेकिन अंतर्कलह के कारण सरकार चली गई। इसके बाद सत्ता में लौटे शिवराज सिंह चौहान ने जनजातियों को अपनी सरकार की शीर्ष प्राथमिकता बना ली।

दरअसल 2018 में मिली हार के बाद भाजपा को यह आभास हो गया कि जनजातीय समाज में पैठ बनाने के लिए उसे नए सिरे से प्रयास करने होंगे। नेतृत्व को लगने लगा कि वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में यदि सत्ता बरकरार रखनी है तो आदिवासियों का पूर्ण विश्वास हासिल करना ही होगा। इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सुनियोजित तरीके से एक के बाद एक कदम उठाए। जनजातीय समाज की कांग्रेस विधायक कलावती भूरिया के निधन से रिक्त जोबट विधानसभा सीट पर जीत दर्ज करने के लिए सत्ता और भाजपा संगठन ने दिन-रात एक कर दिए। उपचुनाव के पूर्व ही मुख्यमंत्री राशन आपके द्वार योजना की घोषणा की गई। इसके तहत 89 आदिवासी विकासखंडों में आदिवासियों को उनके गांव में उचित मूल्य पर राशन देने की व्यवस्था की गई है। इससे उनकी बड़ी समस्या का समाधान हो गया है।

15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भोपाल में इस योजना के तहत राशन वितरण के लिए आदिवासी युवाओं को वाहन की चाबी सौंपी। इसके साथ ही कई अन्य योजनाओं की भी शुरुआत की गई। एक तरह से यह आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के साथ ही सियासी संतुलन साधने की बड़ी कोशिश थी, जिसमें सरकार सफल दिख रही है। उज्ज्वला योजना के दूसरे चरण के तहत लाखों हितग्राहियों को नि:शुल्क रसोई गैस सिलेंडर और चूल्हे दिए जाएंगे। इसकी शुरुआत हो चुकी है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भगवान बिरसा मुंडा की जन्मतिथि 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर मनाने एवं भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम गोंड रानी कमलापति के नाम पर करने की घोषणा जनजातीय समाज को जोड़ने की सबसे बड़ी पहल है। दूसरे ही दिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी राज्य के आदिवासी कलाकारों के लिए पांच लाख रुपये का पुरस्कार घोषित कर इस भावनात्मक जुड़ाव को विस्तार दिया। इसके पूर्व उन्होंने आदिवासियों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने का एलान किया था। जाहिर है ये कदम आदिवासियों के बीच सरकार की साख बढ़ाने में मददगार तो साबित होंगे ही, कांग्रेस की चुनौतियों भी बढ़ाएंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *