सूचना विभाग ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की हिदायत को किया दरकिनार, शासकीय धन का जमकर दुरूपयोग

(सुरेन्द्र अग्रवाल द्वारा)
देहरादून। सूबे में त्रिवेन्द्र सरकार के गठन के कुछ समय बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का देहरादून दौरा हुआ था जिसमें उन्होंने मीडिया के सामने यह भरोसा दिलाया था कि अन्य पार्टियों की सरकारों की तरह भाजपा की सरकार शासकीय धन का दुरूपयोग नहीं करेगी। परन्तु प्रदेश में किस हद तक शासकीय धन को बेलगाम व मनमाने ढंग से खर्च किया जा रहा है उसका एक उदाहरण सरकार के एक साल पूरा होने पर मीडिया को जारी विज्ञापनों की धनराशि में स्वतः स्पष्ट हो जाता है।

-राज्यवासियों के समाचार पत्रों के लिये डेढ़ करोड़ से भी कम-
उत्तराखण्ड राज्य के निवासियों द्वारा प्रकाशित किये जाने वाले लघु, मध्यम श्रेणी के लगभग 1250 प्रकाशन सूचीबद्ध हैं जिनके लिये विभाग द्वारा दैनिक के लिये कुल 42 लाख 25 हजार एवं साप्ताहिक पाक्षिक, मासिक आदि के लिये कुल 2 करोड़ 50 लाख का प्रस्ताव तैयार किया गया था जिसके अनुसार प्रति प्रकाशन लगभग 23 हजार रूपये की धनराशि बनती है परन्तु महानिदेशक को शायद राज्यवासी पत्रकार के प्रकाशन के लिये यह धनराशि बहुत ज्यादा प्रतीत हुई और उनके आदेश पर प्रस्ताव से आधा यानि प्रस्तावित 2 करोड़ 92 लाख 25 हजार रूपये में से मात्र एक करोड़ 46 लाख में ही पूरे राज्यवासियों को समेट दिया गया।

-आधा दर्जन महाप्रकाशनों को ढाई करोड़ से अधिक-
राज्यवासी पत्रकारों के प्रकाशनों को प्रस्ताव से भी आधी धनराशि बजट की कमी के चलते दी गई हो ऐसा कतई नहीं है, क्योंकि एक वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर आधा दर्जन प्रकाशनों (कुल छह दैनिक व एक मैगजीन) पर बेहिसाब धन लुटाया गया। सूचना-अधिकार से प्राप्त जानकारी के अनुसार इन पर कुल दो करोड़ 57 लाख 26 हजार रूपये की धनराशि व्यय कर दी गई, जिनमें तीन महाप्रकाशनों को क्रमशः 76 लाख 64 हजार 900, 72 लाख 27 हजार 525 एवं 52 लाख 69 हजार 700 की धनराशि का विज्ञापन एक ही अवसर पर जारी कर दिया गया।

-साढ़े छह सौ पर एक महाप्रकाशन भारी-
त्रिवेन्द्र रावत को उत्तराखण्डियों के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने वाला मुख्यमंत्री माना जाता है परन्तु जिस सूचना विभाग के वह स्वयं विभागीय मंत्री हैं, वहां पर राज्य निर्माण के आन्दोलन से लेकर हर स्तर पर अपने उत्तराखण्ड के हितार्थ समर्पित राज्यवासी पत्रकार के प्रकाशन को औसतन 11 हजार 600 रू0 की मामूली धनराशि के मुकाबले एक महाप्रकाशन को ही 76 लाख 64 900 रू0 की धनराशि का रिलीज़ आर्डर जारी किया गया। यदि अनुपातिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो एक महाप्रकाशन राज्यवासियों के 650 प्रकाशनों पर भारी दिख रहा है।

-महाप्रकाशनों को विज्ञापन जारी करने में नियमों की अनदेखी-
स्रकारी विभागों के लिये निर्धारित प्रक्रिया में कार्य से पूर्व वित्तीय स्वीकृति प्राप्त करना अनिवार्य है। बेहद आकस्मिक कार्य के लिये संदर्भ में सक्षम स्तर से बगैर वित्तीय स्वीकृति के कार्यादेश जारी किया जा सकता है परन्तु महाप्रकाशनों को ढाई करोड़ से अधिक धनराशि का कार्यादेश बगैर वित्तीय स्वीकृति के जारी कर दिया गया, जो नियमों का खुला उल्लंघन है।

-मीडिया एडवाइजर या महानिदेशक कौन जिम्मेदार-
एक साल के अवसर पर महाप्रकाशनों पर बेहिसाब धनराशि व्यय करने और राज्यवासियों के प्रकाशनों के लिये औसतन ग्यारह हजार पांच सौ जैसी मामूली धनराशि स्वीकृत करने के निर्णय के लिये कौन जिम्मेदार है। हरीश रावत के मुख्यमंत्रित्व काल में तत्कालीय मीडिया एडवाइजर सुरेन्द्र कुमार एवं तत्कालीन महानिदेशक विनोद शर्मा ने सदैव राज्यवासियों के प्रकाशनों व महाप्रकाशनों के मध्य औचित्यपूर्ण संतुलन बनाये रखा परन्तु वर्तमान सरकार के दौर में एक वर्ष के पूर्ण होने के अवसर पर राज्यवासी प्रकाशनों के साथ हुए इस पक्षपात के लिये जिम्मेदार महानिदेशक हैं या मीडिया एडवाइजर यह मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत अवश्य तय करेंगे ऐसी अपेक्षा है।
-पत्रकार संगठनों की कब टूटेगी खामोशी-
उत्तराखण्ड में पत्रकार हितों के संरक्षण का दावा करने वाली अनेक संस्थायें हैं। देवभूमि पत्रकार यूनियन, राष्ट्रीय पत्रकार यूनियन, श्रमजीवी पत्रकार यूनियन, नेशनलिस्ट यूनियन आफ जर्नलिस्ट, इण्डियन फेडरेशन आफ स्माल एण्ड मीडियम न्यूज पेपर्स आदि प्रमुख पत्रकार संस्थायें हैं। इन सभी संस्थाओं में प्रमुख पदाधिकारी लघु व मध्यम श्रेणी के समाचार पत्रों के ताल्लुक रखते हैं। सूचना विभाग में राज्यवासियों के प्रकाशनों के साथ हो रहे अपमानजनक व पक्षपातपूर्ण बर्ताव पर कौन सा यूनियन मुखरता से आवाज़ बुलन्द करेगी और कौन सी यूनियन अभी भी सूचना विभाग के प्रति नरम रूख अपनाये रहेगी, यह भविष्य में दृष्टिगोचर होगा।

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