देहरादून। अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। मामला काशीपुर के आस्था हॉस्पिटल से जुड़ा है। अस्पताल प्रबंधन ने फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत कर भुगतान को आवेदन किया। एक ही दिन में एक परिवार के तीन लोगों को अस्पताल में भर्ती दिखाकर क्लेम प्रस्तुत कर दिया। अच्छी बात यह कि राज्य स्वास्थ्य अभिकरण के अधीन क्रियान्वयन सहायता एजेंसी की पकड़ में मामला आ गया।
योजना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी युगल किशोर पंत ने इस मामले को धोखाधड़ी मान इसकी जांच के लिए दो सदस्यीय कमेटी गठित कर दी है। जिसमें योजना के अंतर्गत मेडिकल एंड क्वालिटी के सहायक निदेशक डॉ. अमलेश कुमार सिंह व मेडिकल ऑफिसर डॉ. मदन मोहन को शामिल किया गया है। यह समिति अगले 15 दिन में रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
उन्होंने बताया कि मामला पकड़ में आने के बाद अस्पताल को जांच रिपोर्ट आने तक पैनल से हटा दिया गया है। अस्पताल के लॉगिन को भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभिकरण के सिस्टम पर तत्काल प्रभाव से ब्लॉक कर दिया गया है।
खुद से, खुद के अस्पताल को रेफर किए मरीज
काशीपुर स्थित आस्था हॉस्पिटल 18 दिसंबर को योजना में सूचीबद्ध हुआ था। अस्पताल के संचालक डॉ. राजीव कुमार गुप्ता ने बताया था कि वह अस्पताल में एकमात्र चिकित्सक हैं। वह एलडी भट्ट राजकीय एलोपैथिक चिकित्सालय काशीपुर में भी संविदा पर तैनात पूर्णकालिक चिकित्सक हैं। खुद के एकल स्वामित्व वाले अस्पताल को फायदा पहुंचाने के लिए डॉ. भट्ट ने भुगतान को लेकर फर्जीवाड़ा किया। उनकी ओर से स्वयं के हस्ताक्षर एवं राजकीय अस्पताल की मोहर के साथ 17 मरीजों को आस्था हॉस्पिटल यानी अपने अस्पताल के लिए रेफर किया।
कई स्तर पर गड़बड़ी
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र केलाखेड़ा में कोई भी चिकित्सक तैनात न होने के बावजूद मेडिकल ऑफिसर की मुहर लगाकर 17 मरीजों को रेफर किया गया, जिनमें सात मरीज आस्था हॉस्पिटल को रेफर हुए। फर्जीवाड़ा की हद यह कि आस्था हास्पिटल में बीती 30 मार्च को एक ही परिवार के तीन सदस्यों ऊषा, आरती व पूजा को भर्ती दिखाया गया। सत्यापन करने के बाद पता चला कि उक्त तीनों मरीज अस्पताल में भर्ती हुए ही नहीं हैं। अस्पताल प्रबंधन ने इन मरीजों के उपचार के नाम पर निर्धारित पैकेज के तहत क्लेम के लिए आवेदन प्रस्तुत कर दिया।
नौ परिवारों के एक से अधिक सदस्यों का उपचार
पड़ताल में यह भी पता लगा कि छह अप्रैल तक आस्था हॉस्पिटल में आयुष्मान योजना के अतंर्गत 57 मरीजों को भर्ती कर उपचार कराया गया। इनमें भी नौ परिवारों के एक से अधिक सदस्यों का उपचार दिखाया गया है। यानी इन नौ परिवारों के 21 मरीजों का इलाज दिखाया गया है। खास बात यह कि 57 मरीजों में से 24 मरीजों का उपचार केवल दो पैकेज (एक्युट गैस्ट्रिक व इंट्रिक फीवर) के अंतर्गत किया गया है।
वहीं, मरीज कलावती व नइमा को बहुत कम समय के अंतराल में एक से अधिक बार अलग-अलग पैकेजों के अतंर्गत अस्पताल में भर्ती कराया गया। मामला पकड़ में आने के बाद राज्य स्वास्थ्य अभिकरण की आंखे खुली और आनन-फानन में इस अस्पताल की सूचीबद्धता को फिलहाल निलंबित कर दिया गया है।